Tareekhon Mein Qaid Papa : ek beti ki diary se nikla prem, shikayat aur samajh ka safar
पापा सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक भाव हैं , और जब वो अदालत की तारीख़ों में क़ैद हो जाएँ, तो बेटा क्या महसूस करता है? “तारीख़ों में क़ैद पापा” एक बेहद संवेदनशील और सच्ची कहानी है, जहाँ एक बेटा अपने पिता की लंबी न्यायिक लड़ाई को अपनी आँखों से देखता है , और दिल से महसूस करता है। यह किताब सिर्फ एक न्याय प्रक्रिया की कहानी नहीं है, बल्कि उसमें उलझे एक इंसान की, एक पिता की, और उससे जुड़े एक बेटे की भावनाओं, संघर्षों और उम्मीदों की यात्रा है। 📖 कोर्टरूम की तारीख़ें कैसे किसी परिवार की रफ्तार रोक देती हैं 💔 एक बेटा, जो कुछ समझ नहीं पाता लेकिन सब कुछ महसूस करता है 🖊️ डायरी के पन्नों से निकलती वो बातें जो कभी कह नहीं पाए 👨👦 पापा का साथ, पापा की चुप्पियाँ, और बेटा होने की परिभाषा अगर आप एक ऐसी किताब पढ़ना चाहते हैं जो दिल छू जाए, सोच बदल दे और रिश्तों की गहराई दिखा दे , तो ये किताब आपके लिए है।
₹299.00

