स्मिता श्रीवास्तव, कानपुर (उत्तर प्रदेश) की निवासी हैं। समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह शिक्षिका के रूप में कार्यरत हैं। उनके भीतर समाज के प्रति एक गहरी समझ है, और साथ ही एक संवेदनशील लेखिका के रूप में वे मानवीय भावनाओं को बड़ी सरलता और सच्चाई से व्यक्त करती हैं। उनकी पुस्तक “प्रेम की 16108 प्रतिध्वनियाँ” भगवान श्रीकृष्ण के जीवन के उस पक्ष को उजागर करती है, जिसे जनमानस भले ही आस्था और लीला के रूप में स्वीकार करता है, परंतु समाज का एक छोटा वर्ग अब भी इसे संख्याओं और तर्क के तराजू पर तौलता है। श्रीकृष्ण के 16108 विवाह यह प्रसंग जहाँ एक ओर भक्तिभाव का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों के लिए शंका और आलोचना का विषय भी रहा है। स्मिता जी ने इस उपन्यास के माध्यम से इन सभी प्रश्नों और भ्रांतियों को सौम्यता और संवेदना के साथ उत्तर देने का प्रयास किया है बिना किसी विवाद में उलझे, केवल प्रेम और सत्य की दृष्टि से। यह पुस्तक नारी मन की भावनाओं, श्रद्धा, समर्पण और उस मौन प्रेम की गहराई को सामने लाती है, जो समय, और अधिकार से परे है। स्मिता जी चाहती हैं कि समाज प्रेम को केवल सांसारिक नहीं, आत्मिक रूप में समझे और खासकर उन नारियों की कथा को सुने, जिन्हें इतिहास ने गिनती तक में समेट दिया। उनके भीतर एक दृढ़ इच्छा है कि वे उन पहलुओं को उजागर करें, जिन पर अक्सर उंगलियाँ उठाई जाती हैं, लेकिन जो वास्तव में सबसे अधिक समझे जाने योग्य हैं।